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प्रधानमंत्री मोदी बन सकते हैं गरीबों के भी मसीहा

इसमें कोई शक नहीं है कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने अपने पौने तीन साल के कार्यकाल में राष्ट्रीय अर्न्तराष्ट्रीय क्षेत्र को प्रभावित तो किया ही है भारत की विविधता में जुडे अलग अलग वर्गों को भी प्रभावित किया है। चाहे देश का उच्च साधन सम्पन्न वर्ग हो या व्यापारी वर्ग, सवर्ण समाज हो या पिछड़ा वर्ग, अल्प संख्यक हो या गरीब वर्ग सभी को प्रभावित करने की सफल कोशिश की है किन्तु समाज का गरीब वर्ग उनसे उतना प्रभावित नहीं है जितने अन्य वर्गों के लोग प्रभावित हैं।
यद्यपि प्रधानमंत्री ने अपने शुरुआती कार्यकाल के तीसरे महीने में ही गरीब वर्ग को बैंकों से जोड़ने और उनका लाभ देने के लिये जनधन योजना चलाई थी। गरीबों को बैंकों का लाभ दिलाने के लिये जनधन योजना में सभी के खाते खोलने का ऐतिहासिक निर्णय लिया था जिसमें एक दिन में एक करोड़ से अधिक खाते खोले गये थे।
इस वर्ष 8 नवम्बर 2016 में जैसे ही नोटबन्दी की घोषणा की गयी वैसे ही लोग कालाधन वापसी के कदम की प्रशंसा करने लगे। अधिकतर देशवासियों ने कालाधन पर लगाम लगाने के इस कदम की प्रसंशा की। कुछ मुट्ठी भर लोग और कुछ राजनैतिक दलों ने अवश्य विरोध किया। जिन लोगों और राजनैतिक दलों ने आलोचना की उनका भी यही कहना था कि इतना बड़ा कदम उठाने से पहले पूरी तैयारी नहीं की गयी अन्यथा पूरा देश लाइन में न खड़ा होता, लोग अपने ही पैसे के लिये बैंक दर बैंक न भटकते। नोटबन्दी की मार देने का लक्ष्य काला कारोबार करने वालों के लिये थी किन्तु इसकी मार पड़ी गरीब वर्ग पर। रोजाना खाने कमाने वाले गरीब लोग मेहनत मजदूरी छोड़ बैंकों की लाइन में लग गये।
नोटबन्दी के समय लोगो को लग रहा था कि शीघ्र ही व्यवस्था सुधर जायगी जैसे जैसे नये नोट छप कर आयेंगे वैसे ही बैंक और एटीएम के सामने की लम्बी लम्बी लाइने समाप्त हो जायगी, किन्तु जैसे ही 500 और 2000 के नये नोटों की खेप आना शुरू हुई देश के कोने कोने में छिपा काला धन सफेद होने लगा। काला बाजारियों ने बैंको से सांठ गांठ कर पुराने नोटों को नये नोटों में बदलवाना प्रारम्भ कर दिया। यद्यपि इनकी धर पकड़ भी हुई अनेक प्रतिष्ठानों, काला बाजारियों एवं संदिग्ध लोगों पर छापे की कार्यवाही की गई जिसमें करोड़ो के नये पुराने नोट पकड़े गये। लाखों करोड़ों की नगदी पकड़े जाने से लोगों का विश्वास डगमगा गया है। गरीबों को लगा कि जिनके लिये नोट बन्दी की गयी थी वे तो अपना कालाधन सफेद कर रहें हैं और वे अपनी ही पूंजी नहीं निकाल पा रहें हैं। इतना ही नहीं गरीबों को जनधन से जोड़ने का जो प्रधानमंत्री जी ने ऐतिहासिक कार्य किया गया था उन्हे भी काला बाजारियों ने काले धन को सफेद बनाने के जाल में फसा लिया। कालाबाजारियों ने अपने सम्पर्क वाले जनधन खाता धारकों के खातों में लाखों की धनराशि जमा करा दी। जबकि जनधन में अधिकतम 50हजार की धनराशि ही जमा की जा सकती थी, इसप्रकार हजारों गरीब जांच के दायरे में आ गये , जिन्हे अनावश्यक कानूनी दांवपेच से गुजरना पडेगा।
नोट बन्दी के बाद काला धन को सामने लाने के लिये बैंको से धनराशि निकालने की जो राशनिंग की गयी जिसमें  अधिकतर लोग हर दिन बैंक और पोस्ट आफिस से 10000 रुपये और सप्ताह में 24000 रुपये तक निकाल सकतें थे उसमें भी गरीबों को ही परेशान होना पड़ा गरीब लोग मात्र दो हजार रुपये ही निकाल पा रहे थे क्यांेकि गरीब लोगों के अधिकतर खाते ग्रामीण बैंकों या सहकारी बैंकों में हैं इन बैंकों से इससे अधिक धनराशि नहीं दी गयी। एटीएम से मात्र 2500 रुपये ही निकालने की सुविधा थी। किन्तु अधिकतर एटीएम से मात्र 2000 ही निकले। धनराशि जमा करने में कोई सीमा नहीं रखी गयी केवल पहिचान पत्र की अनिवार्यता रखी गई, लोग पेन कार्ड, आधार कार्ड, मतदान पहिचान पत्र, पासपोर्ट आदि दिखाकर बैंकों और पोस्ट आफिस में नोट जमा कर सके। 10 से 24 नवम्बर तक प्रतिदिन नोट बदलने की सीमा 4000 रुपये रखी गयी ै जिसे बाद में 2000 कर दिया गया और अब केवल विदेश में बसे भारतीयों के लिये रिजर्व बैंक में नोट बदलने की सुविधा है जो 31 मार्च 2017 तक बदले जा सकते हैं। जबकि घोषणा में कहा गया था कि 31 दिसम्बर 2016 के बाद रिजर्व बैंक के निर्धारित काउन्टरों पर 31 मार्च 2017 तक दो हजार तक के पुराने नोट समुचित कारण बताकर बदले जा सकेंगे। इसमें भी गरीबों का ही नुकसान हुआ क्योंकि इनके नोट रखने की कोई उपयुक्त जगह नहीं होती , वे इधर उधर रख देते हैं और भूल जातें हैं ऐसे नोट उठाधरी में मिलते हैं जिनका अब वे उपयोग नहीं कर सकते।
सरकार कालेधन पर अंकुश लगाने के लिये इलेक्ट्रानिक पेमेन्ट को काफी समय से बढ़ावा दे रही थी किन्तु उसमें गति नहीं आ पा रही थी। नोटबन्दी के बाद इलेक्ट्रानिक पेमेन्ट का बढ़ावा देने से  तीन सौ प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हुई है। नोट बन्दी के बाद इलेक्ट्रानिक पेमेन्ट को बढ़ावा देने के लिये नीति आयोग, आयकर विभाग और संचार विभाग ने अनेक प्रोत्साहन एवं पुरस्कार घोषित किये हैं जिससे देश धीरे धीरे कैश लेस लेन देन अपना लेगा। इसमें शहरी और पढे़ लिखे लोगों को तो नकदी विहीन लेन देन की जानकारी आसानी से मिल रही है ग्रामीण व कम पढे़ लिखे, अशिक्षित लोगों को इसमें भी नुकसान उठाने की सम्भावना है। जिसप्रकार गरीबों को वेवकूफ बनाकर लोग एटीएम से पैसा निकाल लेते हैं उनके खातों से धनराशि निकाल लेते हैं। इसकी क्या गारन्टी है कि आनलाइन पेमेन्ट में धोखाधड़ी नहीं होगी? आनलाइन के कमीशन का बोझ भी गरीबों को ही सहन करना पडेगा जो इन्ही की जेब से कटेगा।
अब सरकार ने कालाधन को सफेद बनाने का एक और अवसर दिया है। 16 दिसम्बर को घोषित दूसरी आय घोषणा के साथ गरीब कल्याण योजना जोड़ दी गयी है जिसमें घोषणा में सम्मिलित सरचार्ज का 33ः गरीबों के कल्याण में खर्च किया जायेगा। दूसरी आय घोषणा के अन्तर्गत व्यक्ति जितनी धनराशि घोषित करेंगें उसका 30ः आयकर व आयकर का 33ः सरचार्ज तथा घोषित की जा रही धनराशि का 10ः अर्थदण्ड के रूप  में प्रथक प्रथक जमा करनी होगी इसप्रकार कुल 49.9ः धनराशि जमा की जायगी। प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना 2016 की धनराशि अर्थात् सरचार्ज ‘‘रिजर्व बैंक आफ इण्डिया’’ के ब्राण्ड खाते में जमा की जा रही है। शेष 25ः बैंक में जमा की गयी धनराशि चार साल के लिये जमा रहेगी, जिस पर कोई ब्याज नहीं मिलेगा। जमाकर्ता इस धनराशि को किसी अपने प्रिय व्यक्ति के नाम नामित कर सकता है किन्तु हस्तांतरित नहीं कर पायेगा। इसके बाद जो 25ः की धनराशि बचेगी उसे घोषितकर्ता अपने सुविधानुसार व्यय कर सकतें हैं वह सफेद धन कहा जायेगा। प्रधानमंत्री जी ने गरीब कल्याण योजना तो चलादी किन्तु यह विस्तार से नहीं बताया कि इस धनराशि से गरीबों का कल्याण किस प्रकार किया जायेगा। एक तो इस योजना का विस्तृत प्रचार प्रसार कर प्रधानमंत्री गरीबों के हितैषी होने की छवि बना सकतें हैं। गरीबों के मसीहा बनने का यह सबसे सरल कदम है।
8 फरवरी 2017 को नोटबन्दी के 3 माह हो चुके हैं किन्तु अब भी लोग इसी में उलझे हुये हैं। मैं आश्वस्थ हूँ कि अब भी लोगों के पास 500 व 1000 के तमाम नोट रखें हैं जिनका कोई उपयोग नहीं हो सकता, वे केवल रद्दी के टुकडे़ हैं। ये रद्दी के टुकड़े ही मोदी जी को लोकप्रियता के शिखर तक पहुंचा सकते हैं और गरीबों के मसीहा की उपाधि भी दिलवा सकती हैं इसके लिये प्रधानमंत्री जी को सिर्फ निर्णय लेना है। जनधन योजना में जो खाते खोले गये थे उनमें से 9 नवम्बर से 31 दिसम्बर 2016 तक जिन खातों में कोई धनराशि नहीं जमा हुई उनके खाते धोषित कर दिये जाये और 500 व 1000 के अब भी पुराने नोट रखने वालों से कहा जाय कि े उन्हे इन खातों में जमा करा दें जिसमें उन्हे पहिचान बताना आवश्यक न हो। उसमें बैकों को निर्देश हो कि सभी खातों में धनराशि जमा हो, ऐसा न हो कि कुछ में जमा हो तथा कुछ में न जमा हो इस प्रकार जनधन खातों में पुराने नोट जमा करने की एक तिथि निर्धारित कर दी जाय तथा उस तिथि के बाद समीक्षा कर ली जाय कि जिन खातों में कम जमा हो उसे दूसरे खातों में समायोजित कर बराबर कर दी जाय । इस कदम से 3 फायदें होगें।
1- बन्दनोट जो 30 दिसम्बर 2016 के बाद रद्दी के टुकडे़ हैं और अब केवल रद्दी की तरह लोगों के पास हैं वे उपयोग हो जावेगें राष्ट्रीय सम्पत्ति की छति की बचत होगी और राष्ट्र की आर्थिक गतिविधियों में काम आयेगें।
2-मोदी जी केे नाम से मशहूर है कि कालेधन से आये 15-15 लाख रुपयें सबके खातों में जमा कराये जायेगें वह कथन भले ही शतप्रतिशत सच न हो किन्तु कुछ प्रतिशत में अवश्य सच हो जायेगा।
3- जिन लोगों के जनधन खातों में 9 नवम्बर से 31 दिसम्बर 2016 तक कुछ नहीं जमा हुआ वे वास्तव में गरीबों के खाते हैं उनके खातों में भी कुछ न कुछ धन जमा हो जावेगा वे सरकार के शुक्र गुजार होगें। उन्हे लगेगा कि सरकार ने जो जनधन खाते खुलवाये थे उनसे गरीबों को लाभ मिला है अभी तक गरीबों के दिमाग में यही धारणा है कि सरकार ने ये खाते अनावश्यक खुलवाये हैं। इस छोेटे से कदम से निश्चित ही मोदी जी की छबि गरीबों के मसीहा की बनेगी क्योंकि लाख कोशिशों के बावजूद गरीब अभी तक उन्हे अपना मसीहा नहीं मान पाया है।

-शिवप्रसाद भारती
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ईमेलः shivprasadbharti@gmail.com

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